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कवितावली

चन्द्र की कथा अनुसार है कि अगुण भी गुण ग्रहण कर लेते हैं अथवा राम निर्गुणियों में भी गुण देखते हैं यह उनकी अनुपम बात है। आरत (दुखी), दीन और अनाथों पर राम अपने हाथों की छाया करते हैं अर्थात् उनकी रक्षा करते हैं।

[ १५४ ]

तेरे बेसाहे बेसाहत औरनि, और बेसाहिकै बेंचनहारे।
ब्योम रसातल भूमि भरे नृप कूर कुसाहिब सेँतिहुँ खारे।
तुलसी तेहि सेवत कौन मरे? रजतें लघु को करे मेरु तें भारे?।
स्वामी सुसील समर्थ सुजान सो तासों तुही दसरत्थ दुलारे॥

अर्थ―तेरे मोल लिये और मोल लेते हैं अथवा जिसे तुम मोल ले लेते हो वह औरो को ख़रीद सकता है, और सब मोल लेकर बेचनेवाले हैं। आकाश, पृथ्वी और पाताल में बहुत से राजा भरे हैं परन्तु क्रूर हैं और मुफ्त में भी कडुवे हैं अथवा कुसाहिब हैं तिहुँ (वृथा) खार रखनेवाले हैं। तुलसीदास कहते हैं कि उनकी सेवा में कौन मर सकता है अर्थात कोई नहीं। कौन कण से भी छोटे को मेरु से भी भारी करनेवाला है? दशरथ के दुलारे! तुझसा सुशील स्वामी समर्थ और सुजान तू ही है।

घनाक्षरी

[ १५५ ]

जातुधान भालु कपि केवट बिहंग जो जो,
पाल्यो नाथ सद्य सो सो* भयो कामकाज को।
भारत अनाथ दीन मलिन सरन आये,
राखे अपनाइ†, सो सुभाव महाराज को॥
नाम तुलसी पै भोंड़े भाग‡, सो§ कहायो दास,
किये अंगीकार ऐसे बड़े दगाबाज को।
साहेब समर्थ दशरथ के दयालु देव,
दूसरो न तोसों तुही आपने की लाज को॥



*पाठान्तर―मद्य सो भयो।
†पाठान्तर―सनमानि।
‡पाठान्तर―भाँग।
§पाठान्तर―तें।