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कवितावली


और तीनों गुणों से परे हैं, त्रिपुर को मथन करनेवाले, देवताओं में श्रेष्ठ हैं, ऐसे महादेव की जय (हो)।

[२९३]


अर्ध-अंग अंगना, नाम जोगीस जोगपति।
विषम असन, दिग्वसन, नाम विस्वेस बिस्वगति॥
कर कपाल, सिर माल ब्याल, विषभूति विभूषन।
नाम सुद्ध, अबिरुद्ध, अमर, अनवद्य अदूषन॥
बिकराल भूत-बैताल-प्रिय, भीमनाम भव-भय-दमन।
सब विधि समर्थ महिमा अकथ तुलसिदास संसय समन॥

अर्थ—जिनकी स्त्री आधे अङ्ग में है, जो महायोगीश, योगियों के पति हैं, जिनका भोजन विषम (धतूरा आदि) है, दिशाएँ ही जिनके वस्त्र हैं, जो विश्वपति हैं और विश्व की गति हैं, हाथ में जिनके कपाल है, गले में साँपों की माला है और विष-विभूति (ख़ाक) ही जिनका आभूषण है, जो पवित्र नामवाले हैं और जिनका कोई वैरी नहीं है, जो अमर हैं, दुःख-रहित और दोष-रहित हैं जिसको विकराल भूत और वैताल-प्रिय हैं, भीम (डरानेवाला) जिनका नाम है, जो विश्व के भय को नष्ट करनेवाले हैं, सब भाँति जो समर्थ हैं और जिनकी महिमा अकथनीय है, वही तुलसीदास के संशय का नाश करनेवाले हैं।

[ २९४]

भृतनाथ भयहरन, भीम, भय भवन भूमिधर।
भानुमंत भगवंत, भूति भूषन* भुजंग वर॥
भव्य-भाव बल्लभ, भवेस† भव-भार-बिभंजन।
भूरिभाग, भैरव कुजोग-गंजन जन-रंजन।
भारती-बदन, बिष-अदन सिव, ससि-पतंग-पावक-नयन॥
कह तुलसिदास किन भजसि मन, भद्र-सदन मर्दनमयन।



*पटान्तर—भूमि-भूषण।
†पठान्तर—महेश।