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कवितावली

कवितामली तुलसीविलाल गोरे भात बिललति श्रुति, मानों हिमगिरि चार चाँदनी सरद की । अर्थ धर्म काम मोक्ष वसत बिलोकनि में, कासी करामाति जोगी जागति मरद की ॥ अर्थ-जिसने विष को खाया और उससे जिसका शरीर अजर ( जरा या बुढ़ापा से रहित) और अमर हो गया, जिसका घर श्मशान है; खाक की गठरी ही जिसका धन है; उमरू और मुण्ड जिसके हाथ में है; विकरात साँप जिसका आभूषण है; बड़े बावले को अपने वाहन बैल पर बड़ी रीझ है; गोरा बड़ा बदन है, जिस पर विभूति ऐसी चमकती है मानो हिमालय पर सुन्दर शरद् रात्रि की चाँदनी; धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष जिसकी चितवन में हैं, उस वीर योगी की करामात काशी में जगती है अर्थात तत्काल दिखाई देती है। [ ३०१ ] पिङ्गल जटा-कलाप, माथे पै पुनीत आप, पावक नयना, प्रताप 5 परछ बरत हैं। लोचना बिसाल लाल, सोहै बाल-चंद्र भाल, कंठ कालकूट, ब्याल भूषन धरत हैं ॥ सुंदर दिगंबर बिभूति गात, भाँग खात, रूरे स्टूगी पूरे काल-कंटक हरत हैं। देत न अघात, रीझि जात पात आक ही के, भोलानाथ जोगी जब औढर ढरत हैं । अर्थ-(महादेवजी ) पिङ्गल (भूरी ) जटा का समूह धारे हैं। उनके सिर पर पवित्र पाप (गङ्गाजी) हैं, अग्नि नेत्र हैं, भौह पर उसका प्रताप जाज्वल्यमान है, लाल नेत्र बड़े हैं और बाल (दूज का) चन्द्रमा माथे पर शोभायमान है, गले में विष और साँपों का जेवर धारण किये हैं; सुन्दर हैं, नङ्गे हैं, शरीर पर भस्म रमाये हैं, भाँग खाते

  • पाठान्तर-भूपर।

पाटान्तर-लायन।