पृष्ठ:कवितावली.pdf/२२४

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कांडांक गहि मंदर बंदर भालु पले लं० ३४ गाज्यो कपि गाज ज्यो विराज्यो ज्वाल जाल जुत सुं० ८ गौरीनाथ भोलानाथ भवत भवानीनाथ उ० १७१ छन्दांक पृष्ठांक ११८ ७६ ६० ३११ चल्यो हनुमान सुनि जातुधान कालनेमि चाहै न अनंग-परि एको अंग मंगन को चेरो राम राय को.सुजस सुनि तेरो लं० ५५ १६१ १३६ ३०३ छार ते सँवारि कै पहारह ते भारी किया छोनी में के छोनीपति छाजै जिन्हें छन्न-छाया ch बा० ३० २८ १७० १०६ + " ३२ उ० ५५ कि० १ १३३ लं. ६ ५१ " ११३ १७४ १६७ ५२ २७५ १०७ ११७ २५५ जग जाँचिए कोउ न; जाँचिए जड़ पंच मिलै जेहि देह करी जनम्यो जेहि जोनि अनेक क्रिया जप, जोग, विराग, महा मख-साधन जब अंगदादिन की मति गति मंद भई जब नयनन प्रीति ठई ठग श्याम सों जब पाहन भे बनबाहन से जबै जमराज रजायसु ते जय जयंत-जय-कर जय ताड़का-सुबाहु-मथन जय माया-मृग-मथन "जल को गये लक्खन, हैं लरिका जलजनयन, जलजानन, जटा हैं सिर जहाँ जम जानना घोर नदी जहाँ तहाँ बुबुक बिलोकि बुबुकारी देत जहाँ बन पावनो सुहावनो विहंग मृग जहाँ बाल्मीकि भये ब्याध ते मुनीन्द्र साधु जहाँ हित, स्वामि, न संग सखा । ११ ११४ अ. १२ २५६ ३४ १४८ १४६ २० उ० ५२ उ० १४१ " १३८ २८३ २८० ११६