पृष्ठ:कवितावली.pdf/२५

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प्रामीण भाषा के शब्द,-कांडिगो, नाई, साड़े, झुकर, खपुआ, फङ्ग, चटकन, विसाहे, मजक इत्यादि। तोड़े-मरोड़े हुए शब्द-~-तिच्छन, नच्छन, माहली, लसम, जरणी, जानपनी, उम्पम इत्यादि- कवितावली में सामयिक वर्णन कवितावली में सामयिक अवस्था का वर्णन अनेक छन्दों में किया गया है- (१) जाहिर जहान में जमाना एक भांति भयो, बेंचिये विवुध-धेनु रासभी बेसाहिए । ऐसेऊ कशल कलिकाल में कृपालु x x x (२) स्वारथ सयानप, प्रपंच परमारथ, कहायो राम रावरी है', जानम जहानु है। नाम के प्रताप, बाप! अाज ला निवाही नीके, धागे को गोसाई दामी सबल सुजानु है ॥ कलि की कुचालि देन्त्रि दिन दिन दूनी देव ! पाहरूई चार हरि हिय हहरानु है । तुलसी की, बलि, बार बार ही संभार कीबी जबपि कृपानिधान सदा सावधान है। (३) दिन दिन दूनो देखि दारिंद दुकालदुख हुरित दुराज, सुख सुकृत संकोचु है। मांगे पैंत पाबत प्रचारि पातकी प्रचंड काल की कसलता मले को हात पोचु है । श्रापमे तो एक x x x xx (.) राजा रत, नागी श्री निरागी, भूरि भागी ये अभागी जीव जरत, प्रभाव कलि बाम को। xx (५) बरन-धरम गयो, प्रास्रम निवास तज्यो, घासन चकित सो परावना परो सो है। करम उपासना कुबासना बिनास्या, ज्ञान बचन, विराग बेष जगत हरी सो है ॥ गोरख जगायो जोग भगति भगायो लोग, निगम नियोग ते सो केलही छरो सो है। काय मन बचन सुभाय तुलसी है जाहि राम नाम को भरोसो ताहि को भरोसा है। (६) बेद पुरान बिहाइ सुपंथ कुमारग कोटि कुचाल चली है। काल कराल नेपाल कृपाल न राज-समाज बढाई छली है। वन-विभाग न शास्रम-धर्म, दुनी दुख-दोष-दरिद्र-दली है। स्वास्थ को परमारथ को कलि राम को नाम-प्रताप बली है।