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सुन्दरकाण्ड

शब्दार्थ—समिध= समिधा, यज्ञ करने की लकड़ी। पूँँगीफल= सुपारी। जव= जौ। सौंज= सामग्री। लंगूर= दुम। प्रतिकूल= वैरी। हुने= आहुति दिये।

[ ६० ]


गाज्यो कपि गाज ज्यों विराज्यो ज्वाल जाल जुत,
भाजे* बीर धीर, अकुलाइ उठ्यो रावनो।
‘धाओ धाओ धरो’ सुनि धाये जातुधान धारि,
बारिधारा उलदैं जलद ज्यों नसावनो†॥
लपट झपट झहराने, हहराने वात,
भहराने भट, परयो प्रबल परावनो।
ढकनि‡ ढकेलि पेलि सचिव चले लै ठेलि,
“नाथ न चलैंगो बल अनल भयावनो॥”

अर्थ—वज्र के समान हनुमान गरजे और अग्नि की ज्वाला सहित अति शोभायमान हुए। बड़े-बड़े धीर-वीर भागने लगे और रावण भी घबरा गया। “दौड़ो! दौड़ो! पकड़ो।” सुनकर राक्षसों की सेना पानी ले-लेकर दौड़ी, मानो सावन का बादल पानी की धारा उलट रहा है अथवा मानो नसावनो (प्रलयकाल का) मेघ है। आग की लपट बढ़ने लगी, हवा बड़े वेग से चलने लगी, योधा भी घबरा गये और सब लोग भागने लगे। धक्के से ज़बरदस्ती मन्त्री लोग (रावण को) ढकेल ले गये (भगा ले गये) और कहने लगे कि हे नाथ! यहाँ कोई बल नहीं चलेगा, अग्नि बड़ी भयङ्कर है।

शब्दार्थ—गाज्यो= गरजा। गाज = वज्र। ज्वाल-जाल= अग्नि की किरणें। उलदैं= उलचने लगे। झहराने= झुलसे हुए। वात= वायु। ढकनि= ढक्कों से। पेलि= ज़बरदस्ती पकड़कर। अनल= अग्नि। [६१]


बड़ो बिकराल बेष देखि, सुनि सिंहनाद,
उठ्यो§ मेघनाद, सविषाद कहै रावनो।



* पाठान्तर—भाज्यो।
†पाठान्तर—जौन सावतो।
‡पाठान्तर—हकानि=बुलाकर।
§पाठान्तर—डरयो।