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पृष्ठ:कविता-कौमुदी 1.pdf/१३७

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८२ हित हरिवंस प्रसंखित श्यामा कीरति कविता- कौमुद free धनी । मावत स्त्रवननि सुनत सुखाकर विस्व दुरित दवनी ॥ १ ॥ चलहि किन मानिनि कुञ्ज कुटीर । तो बिन कुंवर कोटि वनिता जुत मथत गदगद सुर बिरहाकुल पुलकित श्रवत कासि कासि वृषभान नंदिनी विलपत मदन की पीर ।। विलोचन नीर | विपिन अधीर ॥ स्त्री बिसिख व्याल मालावलि पञ्चानन पिक कीर । मलयज गरल हुतासन मारुत साखामृग रिपु चीर ॥ हितहरिवंस परम कोमल चित सपदि चली पिय तीर । सुनि भय भीत वजू को पिंजर सुरत सूर रनवीर ॥ २ ॥ आजु बन नीको रास बनायो । पुलिन पवित्र सुभग कल कंकन किकिनि नूपुर जुवतिनु मंडल मध्य यमुनातर मोहन बेनु बजायो । धुनि सुनि खग मृग सचुपायो । श्यामघन सारंग राग जमायो || ताल मृदंग उपंग मुरज डफ विविध विसद वृषभान नंदिनी अंग सुगंध मिलि रस सिधु बढ़ायो । दिखायेो ॥ नचायो । अभिनय निपुन लटकि लट लोचन भृकुटि अनंग तातार ताथेह धरि नवगति प्रति ब्रजराज सकल उदार नृपति चूड़ामणि सुख परिरंभन चुंबन आलिंगन उचित रिकादेो ॥ वारिद बरखायो जुवति जन पायो || बरस्वत कुसुम मुदित नभ नायक इन्द्र निसान बजायो । हितहरिवंस रसिक राधा पति जस बितान जग छायो । ३ स