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पृष्ठ:कविता-कौमुदी 1.pdf/१३८

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नरहरि ८३ न नरहरि रहरि का जन्म सं० १५६२ में फतेहपुर जिले के असनी गाँव में हुआ। ये १०५ वर्ष तक जीवित रहे । अकबर के दरबार में इनका अच्छा मान था । इन्होंने एक छप्पय लिख कर एक गाय के गले में लटका कर उसे अकबर के सामने उप- स्थित किया था। कहते हैं इसके प्रभाव से अकबर ने अपने राज में गोबध बंद कर दिया था। वह छप्पय यह है- अरिहुँ दन्त तृन धरै ताहि मारत न हम संतत तृन चरहिं बचन उच्चरहिं सबल कोइ । दीन होइ ॥ अमृत पय नित स्रवहि बच्छ महि थंभन जावहि । हिन्दुहि मधुर न देहिं कटुक तुरुकहिं न पियावहिं || कह कवि नरहरि अकबर सुनां अपराध कौन मोहि मारियत मुयहु चाम इनके बनाये हुए नीति विषयक दो ग्रन्थ सुने बिनवत गउ जोरे करन । सेवह चरन || जाते हैं । इनकी कविता के कुछ नमूने देखिये:- नरहरि धरहरि को करें जननि सुतहि विष देइ | बेड़ा हठि खेती चरै साधु परद्धन लेइ ॥ साधु परद्धन लेइ नाव करिया । गहि बोरे । सोइ पहरू सोइ चोर प्रीति प्रियतम हटि तोरें ॥ ज्ञानवान नृपति प्रजहिं दुख छितिपति अकबर साह हठ देइ कौन समरथ करै घरहरि । सुतो धरहरि करें नरहरि ॥ १ ॥ करें निधन परिवार बढ़ावै । बँधुआ करें गुमान बनी सेवक हवावे || परिडत किरिया हीन रॉड़ दुरबुद्धि प्रमाने । धनी न समझे धर्म नागि मरजाद न माने ॥