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पृष्ठ:कविता-कौमुदी 1.pdf/१४१

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८६ कविता-कौमुदी

स्वामी हरिदास मी हरिदास ललिता सखी के अवतार समझे जाते थे । मुलतान के समीप सारस्वत स्वा ब्राह्मण कुल में इनका जन्म हुआ था । ये

              • बड़े त्यागी और विरक्त पुरुष थे । इनके

प्रायः सभी शिष्य महात्मा और सुकवि थे । इन्होंने टट्टी वाली वैष्णव सम्प्रदाय चलाई । गान विद्या में ये बड़े प्रवीण थे । तानसेन बैजू बावरे को गानविद्या इन्हों ने सिखलाई थी । ये वृन्दावन में रहा करते थे । अकबर बादशाह भी एक बार तानसेन के साथ इनका दर्शन करने के लिए आये थे । इन्होंने कई ग्रन्थों की रचना की है। इनके जन्म मरण का ठीक समय विदित नहीं है । इनकी कविता का कुछ नमूना हम नीचे लिखते हैं :- १ गहो मन सब रस को रस सार ।

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लोक वेद कुल करमै तजिये भजिये नित्य बिहार ॥ गृह कामिनि कंचन धन त्यागौ सुमिरो श्याम उदार ॥ गति हरिदास रीति संतन की गादी को अधिकार ॥ २ गायो न गोपाल मन लाइकै निवारि लाज पायो न प्रसाद साधु मंडली में जाइके । धायो न धमक वृंदा विपिन की कुरंजन में रहयो न सरन जाय बिठलेसराइ के । नाथ जू न देखि छक्यो छिन हू' छबीली छाँव सिह परि परस्यो नाहि सीसह नवाइके । कहै हरिदास तोहिं लाजहू न आवे नेक जनम गमाया न कमायो कछु आइके ॥