सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:कविता-कौमुदी 1.pdf/१४२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

नन्ददास न नन्ददास न्दिदास तुलसीदास जी के सगे भाई और स्वामी विट्ठलनाथ जी के शिष्य थे । अष्ट छाप में इनका भी नाम है । २५२ वैष्णवों की वार्ता में लिखा है कि शिष्य होने के पहले ये एक बार द्वारिका जा रहे थे; पर राह भूल कर सीनन्द गाँव में पहुँचे । वहाँ एक खत्री की परम सुन्दरी स्त्री पर आसक्त हो गये । उस स्त्री के सम्बन्धी इनसे पिंड छुड़ाने के लिये उसे लेकर गोकुल चले गये, ये भी पीछे पीछे लगे रहे। अंत में विलनाथ जी के उपदेश से इनका मोह भंग हुआ और ये कृष्ण भगवान प्रेम में फंस गये । इन्होंने कई ग्रंथ बनाए हैं । उनके नाम ये हैं:-- रासपंचाध्यायी, अनेकार्थ नाम माला, रुक्मिणी मंगल, हितोपदेश, दशमस्कंध भागवत, दानलीला, मानलीला, शानमंजरी, अनेकार्थमंजरी, रूपमंजरी, नाममंजरी, नाम चिता- मणि माला, रसमंजरी, बिरहमंजरी, नाम माला, नासकेतु पुराण गद्य, और श्याम सगाई । भंवरगीत भी इन्हीं का रचित कहा जाता है। इसकी कविता भी बड़ी मनोहारिणी है । २५२ वैष्णवों की वार्ता में लिखा है कि इन्होंने समस्त श्रीमद्भ गवत का पद्यानुवाद किया था, परंतु मथुरा के कथावाचकों के आग्रह से इन्होंने उसे जमुना जी में प्रवाहित कर दिया । रासपंचाध्यायी की रचना इन्होंने अपने एक मित्र की सम्मति से की थी । भंवर गीत, इनकी हिन्दी भागवत का अंश जान पड़ता है, क्योंकि उसके प्रारंभ में पुस्तक प्रारंभ का कोई लक्षण नहीं। इसमें कुल ७५ पद्य है ।