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पृष्ठ:कविता-कौमुदी 1.pdf/१४३

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८८ कविता-कौमुदी रास पंचाध्यायी और भंवरीत के कुछ सुन्दर पद हम यहाँ उधृत करते हैं- वन्दन करों रास पंचाध्यायी कृपानिधान सुद्ध ज्योतिमय रूप सदा हरि लीला रस मत्त मुदित श्रीसुक सुभकारी । सुन्दर अविकारी ॥ नित विचरत जगमें। मग ॥ अन्न गति कतहूँ न अटक है निकसत नीलोत्पलदल श्याम अंग नव जोवन भ्राजै । कुटिल अलक मुखकमल मनो अलि अवलि विराजै । ललित बिसाल सुभाल दिपति जनु निकर निसाकर । कृष्ण भगति प्रतिबन्ध तिमिर कहँ कोटि दिवाकर | कृपा रङ्ग रस ऐन नैन कृष्ण रसासव पान अलस कछु घूम श्रवण कृष्ण रसभवन गएड मण्डल भल प्रमानन्द मिलिन्द मन्द मुसुकनि मधु उन्नत नासा अधर बिम्ब शुक की छबि तिन मह अद्भुत भाँति जु कछुक कम्बुकण्ठ की रेख देखि हरि धरमु काम क्रोध मद लोभ मोह जिहि निरखत उरवर पर अति छबि की भीर कछु ब्रिद्दि भीतर जगमगत निरन्तर कुँअर उदर उदार रोमावलि राजति हियो सरोवर रस भरि चली मनो उमगि जिहि रस की कुडिका नाभि सुन्दर राजत रतनारे । घुमारे ॥ दरसै। बरसै ॥ छीनी । लसित मसि भीनी ॥ प्रकासै । नासै ॥ वरनि न जाई । कन्हाई ॥ भारी । पनारी ॥ अस शोभित गहरी । त्रिषली तामहं ललित भाँति मनु उपजत लहरी ॥