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पृष्ठ:कविता-कौमुदी 1.pdf/१४६

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नन्ददास - ६१ भँवर गीत ऊधव को उपदेश सुना ब्रजनागरी । रूप सील गुन लावन्य सबै आगरी ॥ प्रेम धुजा रस रूपिनी उपजावन सुख पुंज । सुन्दर स्याम विलासिनी नव वृन्दाबन कुंज ॥ सुनो ब्रजनागरी ॥ १ ॥ कहन कहन स्याम समै सन्देस एक मैं तुम पै आयो । संकेत कहूँ अवसर नहिं पायो ॥ सोचत ही मन कहि सँदेस में रखो कब पाऊँ इक ठाउँ । नंदलाल को बहुरि मधुपुरी जाउँ ॥ सुनो ब्रजनागरी ॥ २॥ सुनत स्याम को नाम ग्राम गृह प्रेत वेली भरि आनंद रस हृदय पुलकि रोम सब अंग भये कण्ठ घुटे गदगद गिरा बोले

की सुधि भूली । व्यवस्था प्रेम की ॥ ३ ॥ के बैन नैन भरि आये आबेस रही नाहीं सुधि

दोऊ । सुनत सखा विवस प्रेम रोम रोम प्रति गोपिका काऊ ॥ रही साँवरे गात । कल्पतरोरुह साँवरी ब्रजवनिता भई पात ॥ उलहि अंग अंग तें ॥ ४ ॥ भरि तुम फूली ॥ आये जल नैन । जात न बैन ॥