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पृष्ठ:कविता-कौमुदी 1.pdf/१८५

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कविता–कौमुदी
 

कैन जगत यश बेचा कैन लीन यश मोल।
जो यह पढ़ै कहानी हम सँवरै दोउ बोल॥

मुहम्मद वृद्ध बैस जो भई यौवन हन सो अवस्था गई
बल जो गया कै खीन शरीरू दृष्टि गई नयनहिं दै नीरू
दशन गये कै बचा कपोला बैन गये अनरुच दै बोला
बुधि जो गई दै हिय बौराई गर्व गयो तरिहत शिरनाई
श्रवण गये ऊँच जो सूना स्याही गये सीस भा धूना
भँवर गये केसहिं दे भुवा यौवन गयो जीत ले जुवा
जो लहि जीवन जोवन साथा पुनि सो मीच पराये हाथा


 


टोडरमल

टोडरमल खत्री थे। इनका जन्म सं॰ १५८० में और मरण संं॰ १६४६ में हुआ। ये बादशाह अकबर के भूमि-कर विभाग के प्रधान अमात्य थे। एक बार ये बंगाल के गवर्नर भी बनाये गये थे और इन्होंने कई बार पठानों को भी परास्त किया था। वही खाते का सब से पहिले इन्होंने ही प्रचार था। ये हिन्दी कविता भी करते थे, उसके कुछ नमूने नीचे देखिये—

सोहै जिन सासन में आतमानुसासन सु जीके दुःखहारी
सुखकारी साँची सासना। जाको गुन भद्रकार गुण भद्र
जाको जानि भद्र गुन धारी भव्य करत उपासना॥ ऐसे सार
सास्त्र को प्रकास अर्थ जीवन को बनै उपकार नासै मिथ्या
भ्रम बासना। ताते देस भाषा अर्थ को प्रकास करु जाते
मन्द बुद्धिहूँ के हिये होवै अर्थ भासना॥१॥