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पृष्ठ:कविता-कौमुदी 1.pdf/२३७

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कविता कौमूदी
 


हे माता! तू ऐसा पुत्र उत्पन्न कर, जैसा राणा प्रताप है। जिसको अकबर, सिरहानेका साँप जानकर सोता हुआ चौंक उठता है।

अइरे अकबरियाह तेज तुहाले तुरकड़ा।
नम नम ननीसरियाह राण बिना सह राजवी ॥४॥

ऐ अकबर, तेरा तेज देखकर बड़ा आश्चर्य होता है, जिसके सामने महाराणा के सिवाय सब राजा लोग झुक गये।

सह गाबड़ियो साथ एकण बाड़ै बाड़ियो।
राण न मानी नाथ ताँड़ै साँड़ प्रतापसी॥५॥

हे अकबर! तूने गाय रूपी सब राजाओं को एक बाड़े में इकट्ठा कर लिया; परन्तु साँड़ रूपी प्रतापसिंह तेरी नाथ को नहीं मानकर गरज रहा है।

पातल पाय प्रमाण साँझी साँगा हर तणी।
रही सदा लग राण अकबर सूँऊभी अणी॥६॥

महाराणा संग्रामसिंह के पोते प्रतापसिंह की पगड़ी ही गिनती में सच्ची है, जो अकबर के सामने अनम्र होकर उच्च रही।

चोथो चीतोड़ाह बाँटो बाजंती तणो।
माथै मेवाड़ाह थारै राण प्रतापसी॥७॥

हे चित्तौड़ के स्वामी महाराणा प्रतापसिंह! हे मेवाड़पति! पगड़ी तेरे ही सिर पर है।

अकबर समद अथाह तिहँ डूबा हिन्दू तुरक।
मेवाड़ों तिण माहँ पोयण फूल प्रतापसी॥८॥

अकबर रूपी अथाह समुद्र में हिन्दू तुरुक सब डूब गये। परन्तु मेवाड़ के स्वामी महाराणा प्रताप उसमें कमल के फूल के समान रहे।