सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:कविता-कौमुदी 1.pdf/२३८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
पृथ्वीराज और चम्पादे
१८३
 

अकबरिये इक बार दागल को सारी दुनी।
अणदागल असवार चेटक राण प्रतापसी॥९॥

अकबर ने एक ही बार में सारी दुनिया को कलंकित कर दिया। परन्तु चेतक घोड़े के असवार राणा प्रताप निष्कलंक रहे।

अकबर घोर अँधार ऊँघाणाँ हिन्दू अवर।
जागै जगदातार पोहरेराण प्रतापसी॥१०॥

अकबर रूपी घोर अंधकार में सब हिन्दू सो गये। परन्तु जगत् का दाता राणा प्रताप (धर्म-धन की रक्षा के लिये) पहरे पर खड़ा है।

हिन्दू पति परताप पत राखो हिन्दुआणरी।
सहो विपत संताप सत्यसपथ करि आपनी॥११॥

हे हिन्दू पति प्रताप! हिन्दुओं की लज्जा रक्खो। अपनी प्रतिज्ञा पूरी करने केलिये सब कष्टों को सहो।

चम्पी चीतोड़ाह पोरस तणो प्रतापसी।
सौरभ अकबर साह अलियल आभड़िया नहीं॥१२॥

चित्तौड़ चम्पा है, प्रताप उसकी सुगंध हैं। अकबर रूपी भारा उसके पास नहीं फटकता। (चम्पा के फूल पर भौंरा नहीं बैठता)।

पातल जो पतसाह बोलै मुख हुता बयण।
मिहर पछम दिस माँह ऊगै कासप राववत॥१३॥

महाराणा प्रतापसिंह यदि बादशाह को अपने मुख से बादशाह कहें, तो कश्यप जी के संतान भगवान् सूर्य पश्चिम दिशा में उगें।

पटकूँ मूछाँ पाण कै पटकूँ निज तन करद।
दीजै लिख दीवाण इण दो महली बात इक॥१४॥