गुदाम बनाया था, और सन् १६१३ का रचा हुआ यह ग्रन्थ है। गाजीपुर ऐसे छोटे नगर में रहकर अँगरेजों के विषय में इतनी जानकारी रखना कवि के लिये साधारण बात नहीं है। हम यहाँ का॰ ता॰ प्र॰ सभा द्वारा प्रकाशित चित्रावली से कुँवर ढूँढ़न खंड का कुछ अंश उद्धृत करते हैं और उसी पुस्तक से कुछ उत्तम दोहे भी प्रस्तुत करते हैं:—
चित्रावली
जिन पच्छूँ दिस कीन्ह पयाना पहिलहिँ गा सो देस मुलताना।
देखेसि सिंधी लोग सबाईं महिरावन सब सेवहिं साईं॥
हेरेसि ठट्ठा नगर सुहावा बिहँग हरिन सेवैं गंजावा।
काबुल हेरि मोगल कर देसा जहाँ पुहमि पति होइ नरेसा॥
देखेसि रूप सिकंदर केरा स्याम रहा होइ सकल अँधेरा।
देखेसि मक्का विधि अस्थाना हीय अंध तें पाहन जाना।
हाजी सँग मिलि गयउ मदीना का भा गये जो साफ न सीना॥
गा बगदाद पीर के तीरा जेहि निहचै तेहि सँग हमीरा।
इस्ताम्बोल मिसर पुनि हेरा गा लदाख लहु कीन्हे सि फेरा॥
दखिन देस को जे पगु धारा चला ताकि सो लंक पहारा।
पहिलेहि गै हेरेसि गुजराता सुन्द्र धनी लोग सुख राता॥
गयो जाम जहँ कच्छी होई लोग सुरूप सुखी सब कोई।
बलंदीप देखा अँगरेजा जहाँ जाइ नहिं कठिन करेजा॥
ऊँच नीच धन संपति हेरा मद बराह भोजन जिन केरा।
जहाँ जाइ उहँ बन्द साजा लगा संग चढ़ि गयउ जहाजा॥
दोहे
"मान" करहु जो करि सकहु कथनों अकथ अपार।
कथे न कर कछु आवई करनी करतब सार॥१॥