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पृष्ठ:कविता-कौमुदी 1.pdf/२५१

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कविता-कौमुदी
 

सरवर शरवन हेम मेरु कैलाश प्रकाशन।
निशि वासर तरुवरहिँ काँस कुदन दृढ़ आसन॥
इमि कहि प्रवीन जल थलअपक अविध भजित तियगौरिसँगो
कलि खलित उरज उलटे सलिल इंदु शीश इमि उरज ढंग॥

कूर कुरकुट कोटि कोठरी निवारि राखौं चुनि दै चिरैयन
को मूँदि राखों जलियों। सारँग में सारँग सुनाइ के "प्रवीन"
बीना सारँग दै सारंग की जोति करों थलियों॥ बैठी परयंक
पै निसंक ह्वै कै अंक भरौं करेंगी अधर पान मैन मत्त मिलि-
यो। मोंहि मिले इन्द्रजीत धीरज नरिन्द राय एहो चंद आज
नेकु मंद गति चलियो॥


 

मलूकदास

बाबा मलूकदास जी का जन्म, लाला सुंदरदास कक्कड़ खत्री के घर में, वैसाख बदी ५, सं॰ १६३१ में, गाँव कड़ा, जिला इलाहाबाद में हुआ।

संवत् १७३९ में, १०८ वर्ष की अवस्था में मलूकदास जी ने चोला छोड़ा। शरीर छोड़ने से पहले ही इन्होंने अपनी मृत्यु का ठीक ठीक समय अपने चेलों को बतला दिया था।

मलूकदास जी के पंथ की मुख्य गद्दियाँ कड़ा (प्रयाग) जैपुर, गुजरात, मुलतान, पटना, फलापुर, नेपाल और काबुल में हैं।

मलूकदास जी की कविता ज्ञाने से भरी है। उनके कुछ चुने हुये पद और साखियाँ यहाँ उद्धत की जाती हैं—