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पृष्ठ:कविता-कौमुदी 1.pdf/२६६

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सुन्दरदास
२११
 

तृन ऊपर मृतिका बास्त्री तब ऊपर हथिनी राखी।
हथिनी को देखि स्वरूपा सठ धाइ परयो अँधकूया।
धाइ परयो गज कूप में देखा नहीं बिचारि।
काम-अंध जानै नहीं कालबूत की नारि॥१३॥

दूभर रैनि बिहाय अकेली सेजरी
जिनके संग न पीव बिरहिनी सेजरी॥
बिरहै संकल वाहि विचारी सेजरी
सुन्दर दुःख अपार न पाऊँ सेजरी॥१४॥
तौ सही चतुर तूँ जान परबीन अत्ति
परै जनि पिंजरे मोह कूवा।
पाइ उत्तम जनम लाइ लै चपल मन
गाइ गोविन्द गुन जीति जूवा।
आपही आपु अज्ञान नलिनी बँध्यो
बिना प्रभु विमुख कै बेर मूवा।
दास सुन्दर कहै परम पद तो लहें
राम हरि राम हरि बोल सुवा॥१५॥

सुन्दर जो गाफिल हुआ तौ वह साईं दूर।
जो बंदा हाजिर हुआ तौ हाजराँ हजूर॥१६॥
रसु सोई अमृत पिवै रन सोई जिहि ज्ञान।
सुप सोई जो बुद्धि बिन तीनौं उलटे जान॥१७॥
लालन मेरा लाड़ला रूप बहुत तुझ माहिँ।
सुन्दर राखै नैन में पलक उधारै नाहिँ॥१८॥
सुन्दर पंछी बिरछ पर लियो बसेरा आनि॥
राति रहे दिन उठि गये त्यों कुटुम्ब सब जानि॥१९॥
लौन पूतरी उद्धि में थाह लेन कौं जाइ।
सुन्दर थाह न पाइये बिचही गई बिलाइ॥२०॥