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पृष्ठ:कविता-कौमुदी 1.pdf/२७८

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भूषण
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तो तेरा सिर कटवा लूँगा। भूषण ने निभयता से कहा—हाँ। निदान औरंगजेब हाथ धोकर बैठा और भूषण ने कविता पढ़नी प्रारंभ की। भूषण की वीर रसमयी ओजस्विनी कविता सुन कर औरंगजेब को सचमुच जोश आया और वह मोछ पर ताब देने लगा। बस, भूषण की प्रतिक्षा पूरी हुई। औरंगजेब ने भूषण को बहुत पुरस्कार दिया। उस दिन से दरबार में इनकी प्रतिष्ठा बढ़ चली। सं॰ १७२३ में शिवाजी दिल्ली गये। उस समय भूषण दिल्ली ही में थे। औरंगजेब का हिन्दू-द्वेष देख कर उनका चित्त उससे बहुत विरक्त था। परन्तु शिवाजी को हिन्दू जाति और धर्म की रक्षा के लिये खड़ा देखकर उनको बड़ी आशा हुई। शिवाजी के दिल्ली से चले जाने पर एक दिन औरंगजेब ने कवियों से कहा-तुम लोग मेरी झूठी बड़ाई किया करते हो, सच्ची बात कहो। अन्य कवि तो चुप रहे, परन्तु भूषण से चुप न रहा गया। इन्होंने दो कविता में उसकी खासी निन्दा की। इससे औरंगजेब बहुत ही बिगड़ा और वह भूषण को मारने उठा। परन्तु दरबारियों के समझाने से रुक गया। भूषण उसी समय से दिल्ली छोड़कर शिवाजी के दरबार में चले गये। वहाँ इनका बड़ा सम्मान हुआ। लाखों रुपये, घोड़े हाथी और गाँव इनको मिले। ये शिवाजी के साथ कई लड़ाइयों में भी उपस्थित थे। ऐसी कहावत है कि वहाँ से इन्होंने एक लाख रुपये का नमक खरीद कर अपनी भावज के पास भेजा था।

शिवाजी के यहाँ से भूषण सं॰ १७३१ में घर लौटे। राह में आते समय महाराज छत्रसाल बुँदेल के यहाँ भी गये थे। छत्रसाल ने चलते समय इनकी पालकी का डंडा अपने कंधे पर रखकर इनका सम्मान बढ़ाया था। शिवाजी और छत्रसाल