पृष्ठ:कविता-कौमुदी 1.pdf/२८

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( २५ ) और पातंजलि के ग्रन्थों से भी पता चलता है कि आज से कोई बाईस सौ बरस पहले उत्तर भारत में एक ऐसी भाषा प्रच- लित थी, जो कई बोलियों से मिलकर बनी थी । कालिदास ने भी शकुन्तला नाटक में दो प्रकार की भाषा का व्यवहार दिखलाया है। स्त्री बालक और शूद्र से संस्कृत भाषा का ठीक ठीक उच्चारण नहीं बन सकने के कारण एक नवोन भाषा का जन्म हुआ, जिसका नाम "प्राकृत" हुआ । संस्कृत भाषा व्याकरण के नियमों से ऐसी जकड़ी हुई है कि उसके विकार- ग्रस्त होने की कोई संभावना नहीं है । सर्व साधारण लोग अपने अशुद्ध उच्चारण के कारण कहीं संस्कृत भाषा का रूप बिगाड़ न दे, इसलिये विद्वानों ने प्राकृत भाषा का एक नया रूप स्वीकार किया और उसका व्याकरण बनाकर उसे एक स्वतंत्र भाषा बना दी । प्राकृत का सब से पुराना व्याकरण वररुचि का बनाया हुआ मिलता है । संस्कृत को नियमित करने में पाणिनि का व्याकरण सब से अधिक प्रसिद्ध हैं । संस्कृत के शब्दों का प्राकृत और हिन्दी कैसा रूप बन गया है, इसे दिखाने के लिए नीचे हम कुछ शब्द प्रस्तुत करते हैं संस्कृत प्राकृत कर्म हिन्दी कम्म काम हस्त हथ्य हाथ भगिनी बहिणी बहिन धृष्ट ढीठ वार्ता वन्त पुस्तकम् पोत्थओ दुग्ध बुद्ध