पृष्ठ:कविता-कौमुदी 1.pdf/२९

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( २६ ) कर्ण कन घृतम् त्रिअम् मेहा गहिरम् मेघः गम्भीरम् कान घी मेह गहिरा कुछ संस्कृत शब्द ऐसे हैं जो हिन्दी में ज्यों के त्यों व्यवहृत होते हैं। जैसे- बल, हल, बन, मन, धन, जन, दूर, सूर, नदी, शीत, वर्षा, समुद्र, बसन्त, साधु, सन्त, दिन, राजा, कवि, काम, कोध इत्यादि । ऊपर के प्रमाणों से यह बात समझ में आ सकती है। कि प्रत्येक प्रचलित भाषा में नवीन भावों के द्योतक नवीन शब्द और उसी भाषा के अपभ्रंश शब्द नित्य ही बढ़ते रहते हैं। जब ऐसे शब्दों की अधिकता होती है तब वे सब अपभ्रंश शब्द और कुछ उस प्रचलित भाषा के विशुद्ध शब्द मिलकर एक नई बाली का रूप धारण करते हैं. और फिर अपनी उन्नति का नवीन क्षेत्र तैयार कर लेते हैं। हिन्दी भाषा की उत्पत्ति हिन्दी का पुराना नाम हिन्दवी या हिन्दुई हैं जिसका अर्थ है - हिन्दुओं को भाषा । इसलिये हिन्दी के विषय में कुछ कहने के पहिले हिन्दू शब्द' पर विचार कर लेना उचित जान पड़ता है। भारतवर्ष की आर्यजाति का नाम "हिन्दू" क्यों और कब से पड़ा, यह विचारणीय बात है । संस्कृत साहित्य में हिन्दू शब्द का कहीं उल्लेख नहीं। न तो वेद में, न उपनिषद में, न स्मृति में और न पुराणों ही में इस शब्द का कहीं पता है । फिर यह कहाँ से आया और इसमें कौन सी ऐसी विशे-