पृष्ठ:कविता-कौमुदी 1.pdf/३०

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( २७ ) पता देखकर इतनी बड़ी एक सुसभ्य जाति ने उसे ग्रहण कर लिया ? इस प्रश्न का उत्तर देना सहज नहीं । मेन्त्र में एक स्थान पर "हिन्दू" शब्द आया है। इस

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सम्बंध के कुछ श्लोक हम यहाँ उद्धृत करते हैं पश्चिमानाय मन्त्रास्तु प्रोकाः पारस्य भाषया । अष्टोत्तर शताशीतिर्येषां संसाधनात्कलौ ॥ पञ्चखाना सप्तमीराः नवसाहा महाबलाः । हिन्दूधर्म प्रलोसारो जायन्ते चक्रवर्तिनाः ॥ हीच दूषयेत्येव हिन्दूरित्युच्यते प्रिये । पूर्वाना नवशतं षडशीति प्रकीर्तिता ॥ फिरङ्ग भाषया मन्त्रा येषां संसाधनात लौ । अधिया मंडलानाञ्च संग्रामेष्वपराजिताः ॥ इङ्गरेजा नव षट्पञ्च लण्डजाश्वापि भाविनः । शिव रहस्य में भी एक स्थान पर ऐसा कहा गया है। हिन्दूधर्म प्रोप्रा भविष्यन्ति कलीयुगे । हमें तन्त्र और शिव रहस्य के ये श्लोक पीछे से मिलाये हुये जान पड़ते हैं । क्येांकि पूर्वकाल में यदि हिन्दूधर्म कोई धर्म होता तो उसका उल्लेख स्मृति और पुराणों में कहीं न कहीं अवश्य होना । अतएव हम इन श्लोकों को किसी सुचतुर संस्कृतज्ञ की करामात समझ कर अप्रामाणिक सकते हैं । हिन्दू शब्द हमें फ़ारसी भाषा में मिलता है। फ़ारसी का एक पथ सुनिये -- अगर आं तुर्क शीराज़ी बदस्त आरद दिले मारा । बाले हिन्दुवश बख़शम समरकंदो बुखारारा ॥ यह आज से कोई साढ़े पांच सौ बरस पहले का हाफ़िज़