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पृष्ठ:कविता-कौमुदी 1.pdf/३१९

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कविता-कौमुदी
 

बरपिपर पात हस्ती श्रवन कोइ कोइ कवि कुछकुछ कहैं।
बैताल कहैं विक्रम सुनो चतुर चुप्प कैसे रहें॥७॥
ससि बिन सूनी रैन ज्ञान। बिन हिरदै सूनो।
कुल सूनो बिनु पुत्र पत्र बिन तरुवर सूनो॥
गज सूनो इक दंत ललित बिन सायर सूनी।
बिप्र सून बिन वेद और बिन पुहुप बिहूनो॥
हरिनाम भजन बिन संत अरु घटा सून बिन दामिनी।
बैताल कहै विक्रम सुनो पति बिन सूनी कामिनी॥८॥


 

उदयनाथ (कवीन्द्र)

वीन्द्र उदयनाथ कालिदास त्रिवेदी के पुत्र के थे। इनका जन्म सं॰ १७३६ के लगभग हुआ। ये अमेठी के राजा हिम्प्रत सिंह और उनके पुत्र गुरुदत्त सिंह के पास रहा करते थे। ये भगवन्त राय खींची और बूँदी के राव बुद्ध सिंह के यहाँ भी गये थे, और वहाँ इन्हें बड़ा सम्मान भी मिला था। इनका रस चन्द्रोदय नामक ग्रंथ बहुत प्रसिद्ध है। इनकी कविता ब्रजभाषा में शृंगार विषयक अच्छी है।

इनके कुछ छंद यहाँ उद्धृत किये जाते हैं:—

कुंजन ते मग आवत गावत राग बनावत देवगिरी को।
सो सुनि कै वृषभानु सुता तलकै जिमि पंजर जीव चिरी को।
तार थकै नहिँ नैनन तें सजनी अँसुवान की धार झिरी को॥
मार मनोहर नंद कुमार के हार हिये लखि मोलसिरी को॥१॥

छिति छमता की परमिति मृदुता की कैर्धा ताकी

अनीति सौति जनता की देह की। सत्य की सता है सोल।
तरु की लता है रसता है कै विनीत परनीत निज नेह की।