पृष्ठ:कविता-कौमुदी 1.pdf/३३

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( ३२ ) विक्रम संवत् के लगभग बाट नौ सौ वर्ष तक प्राकृत भाषा का प्रचार रहा। बौद्ध और जैन धर्म के संस्थापकों ने अपने सिद्धान्त ग्रंथ उम्र समय की बोलचाल प्राकृत भाषा में रखे थे। काव्य और नाटक में भी प्राकृत का प्रयोग होने लगा था । "L इसके बाद प्राकृत में कुछ परिवर्तन प्रारंभ हुआ। धीरे धीरे वह यहाँ तक बढ़ा कि उसमें से अप्रभ्रंश नाम से एक नवीन भाषा का प्रादुर्भाव हुआ । अपभ्रंश शब्द का अर्थ है बिगड़ी हुई भाषा" । प्राकृत के अंतिम वैयाकरण हेमचन्द्र सूरिने, जो बारहवीं शताब्दी में हुये थे, अपने " सिद्ध हेम शब्दानुशासन" नामक व्याकरण ग्रन्थ के आठवें अध्याय में अपभ्रंश भाषा का उल्लेख किया हैं, और उसका व्याकरण भी लिखा है। उन्होंने उस समय के ग्रन्थों से चुनकर उदाहरणार्थ सैकड़ों पद्य भी लिख दिये हैं, जिनसे उस समय की प्रचलित भाषा की खासी झलक दिखाई पड़ती है । उदाहरणार्थ अपभ्रंश भाषा का एक पद्य हम यहाँ देते हैं- भल्ला हुआ जु मारिया बहिणि महारा कन्तु । लज्जज्जंतु वयंसिअहु जद् भग्गा बरु एन्तु ॥ अर्थात् हे बद्दन अच्छा हुआ जो मेरा पति मारा गया, यदि भागा हुआ घर आता तो मैं सखियों में लज्जित होती । अपभ्रंश भाषा उस समय केवल मामूली भेद के साथ भारत के बहुत से प्रदेशों में बोली जाती थी । हेमचन्द्र के मरने के बाद, थोड़े ही वर्षों में, भारत में राज्य विप्लव हुआ । आपस की फूट से एक विशाल साम्राज्य टुकड़े २ हो गया । स्नेह सम्बन्ध टूट गया, • छोटे छोटे सैकड़ों राज्य कायम हुए । एक राज्य के निवासी दूसरे राज्य के निवासियों को शत्रु