पृष्ठ:कविता-कौमुदी 1.pdf/३४

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( ३३ ) समझने लगे, विदेशी विजेताओं के पैर जमे, और भारत की फूट से वे लाभ उठाने लगे । इस राज्य क्रांति का प्रभाव भाषा पर भी पड़ा। परस्पर ईर्ष्या द्वेष के कारण व्यावहारिक सम्बन्ध संकुचित हुआ, उसी के साथ भाषा की एक रूपता में भी अन्तर आने लगा । प्रदेश का सम्बन्ध विच्छेद होते ही उनमें व्यापक भाषा अपभ्रंश भी प्रत्येक प्रान्त में भिन्न भिन्न रूप में विकसित होने लगी । उसी समय से अपभ्रंश भाषा से गुजराती, पंजाबी, राजपू- तानी मालवी और हिन्दो शाखाएँ निकलने लगीं और १५ वीं शताब्दी में पहुँचकर ये अपने भिन्न भिन्न वातावरण में फूलने फलने लगी । हमारा हिन्दी भाषा दो अपभ्रंश भाषाओं के मिश्रण से बनी है, एक पश्चिमी हिन्दी, दूसरी पूर्वी हिन्दी । पश्चिमी हिन्दी का स्थान राजपूताना ओर उसके पूर्वीय प्रांत हैं, और पूर्वी हिन्दी का अवध बघेलखंड और छत्तीसगढ़ । हिन्दी भाषा का विकास विक्रम को तेरहवीं शताब्दी के मध्यभाग से प्रारम्भ हुआ है । उसी समय से मुसलमानों का अधिकार भो इस देश में बढ़ने लगा। इससे हिन्दी भाषा में अरबी फारसी के भो शब्द मिल गये। चंद बरदायी ने रालो की भाषा के सम्बन्ध में लिखा है:- उक्ति धर्म विशालस्य राजनीति नवं रसं । पट भाषा पुराणं च कुरानं कथितं मया ॥ इसमें कुरान से उसका तात्पर्य मुसलमानी शब्दों से है । उक्त श्लोक से यह प्रकट होता है कि पृथ्वीराज रासो जिस भाषा में लिखा गया है उसमें षटभाषा और अरबी फारसी के शब्दों का मेल है। उसकी बभाषा में एक भाषा पुरान