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पृष्ठ:कविता-कौमुदी 1.pdf/३३३

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कविता-कौमुदी
 

उधार काढ़ि व्यवहार चलावैं छप्पर डारें तारो।
सारे के सँग बहिनी पठवें तीनिउ का मुँह कारो॥

आलस नींद किसाने नासै चोरै नासै खाँसी।
अँखियाँ लीवर बेसवै नासै तिरमिर नासै पासी॥

ना अति बरखा ना अति धूप। ना अति बकता ना अति चूप॥
लरिका ठाकुर बूढ़ दिवान। ममिला बिगरे साँझ बिहान॥

१०

माघक ऊखम जेठक जाड़। पहिले बरखे भरिगै गाड़॥
कहै घाघ हम होय बियोगी। कुँआ खोदि कै धोइहैं धोबी॥

११

सावन सुकला सत्तमी जो गरजे अधरात।
तू पिय जैहो मालवा हौं जैहों गुजरात॥

१२

सावन सुकला सत्तमो चंदा उगे तुरंत।
की जल मिले समुद्र में की नागरि कूप भरंत॥

१३

सावन सुकला सत्तमी छिपि ऊगे भानु।
तब लगि। देव बरीसिहैं जब लगि देव उठान॥

१४

सावन कृष्ण एकादसी जेतो रोहिनि होय।
तेतो समया जानियो खरी धसै जिनि कोय॥