पृष्ठ:कविता-कौमुदी 1.pdf/३६

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( ३५ ) "" नाम " हिन्दुषी " लिखा है } पदार्थ विद्यासार " नामक पुस्तक में, जो सं० १६०३ में छपी है, "हिन्दी भाषा नाम आया है । मलिक मुहम्मद जायसी ने अपनी पद्मावत में लिखा तुरकी अरबो हिन्दवो भाषा जेती आहि । जामें मारग प्रेम का सबै सराहें ताहि ॥ मालूम होता हैं कि पहले हिन्दू लोग इस भाषा को "भाषा" और मुसलमान लोग " हिन्दुई " या " हिन्दुवी कहते थे G4 सं० १८६१ के बने हुये " प्रेमसागर " में लल्लू लाल जी ने इस भाषा का नाम " खड़ी बोली " लिखा है । उन्होंने ही एक जगह अपनी भाषा का नाम रेखते की बोली " लिखा है । जान पड़ता है, भाषा का नाम " रेख़्ता " उस समय रक्खा गया, जब इसमें अरबी, फारसी के शब्द भी मिलने लगे। मुसलमानों में सर्व प्रथम कवि अमीर खुसरो, जिनको मृत्यु सं० १३८२ में हुई, ऐसी भाषा में कविता कर गये हैं जो आज कल की खड़ी बोली से बहुत मिलती जुलती है ; उसमें अरबी फारसी के शब्दों का मेल नहीं । एक नमूना देखिये- तरवर से एक तिरिया उतरी उसने खूब रिझाया। बाप का उसके नाम जो पूछा आधा नाम बताया । इससे मालूम होता है कि खुसरो के समय में ही वर्तमान खड़ी बोली का रूप बन चुका था । अब हम हिन्दी साहित्य की क्रमोन्नति पर विचार करना चाहते हैं । साहित्य के दो भाग हैं-गद्य और पद्य । यहाँ हम क्रमशः दोनों भागों के क्रम-विकास की चर्चा करते हैं।