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पृष्ठ:कविता-कौमुदी 1.pdf/३६१

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कविता-कौमुदी
 

कह गिरिधर कविराय सबै यामैं सधि आई।
शीतल जल फल फूल समय जनि चूको साईं॥२२॥
पानी बाढ़ो नाव मैं घर में बाढ़ो दाम।
दोनों हाथ उलीचिये यही सयानो काम॥
यही सयानो काम राम को सुमिरन कीजै।
परस्वास्थ के काज शीश आगे धरि दीजै॥
कह गिरिधर कविराय बड़ेन की याही बानी।
अलिये चाल सुचाल राखिये अपनो पानी॥२३॥
राजा के दरबार में जैये समया पाय॥
साईं तहाँ न बैठिये जहँ कोउ देय उठाय॥
जहँ कोउ देय उठाय बोल अनबोले रहिये।
हँसिये नहीं हहाय बात पूछे तें कहिये॥
कह गिरिधर कविराय समय सों कीजै काजा।
अति आतुर नहिं होय बहुरि अनखैंहें राजा॥२४॥
कृतघन कबहुँ न मानहीं कोटि करैं जो कोय॥
सर्वस आगे राखिये तऊ न अपनो होय।
तऊ न अपनो होय भले की भली न माने॥
काम काढ़ि चुप रहै फेरि तिहि नहिं पहिचानै।
कह गिरिधर कविराय रहत नितही निर्भय मन॥
मित्र शत्रु सब एक दाम के लालच कृतघन॥२५॥