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पृष्ठ:कविता-कौमुदी 1.pdf/३७५

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कविता-कौमुदी
 

बोधा सब जग ढूँढ्यो फिरि फिरि धाइ।
जेहि मनहीँ मन चाहत सो न लखाइ॥७॥
हिलि मिलि जानै तासों मिलि कै जनावै हेत हित को न
जानै ताको हितू न बिसाहिये। होय मगरूर तापै दूनी मगरूरी
कीजै लघु ह्वै चलै जो तासों लघुता निबाहिये॥ बोधा कवि
नीति को निबेरो यही भाँति अहै आपको सराहै ताहि आपहू
सराहिये। दाता कहा सूर कहा सुन्दर सुजान कहा आपको
न चाहै ताके बाप को न चाहिये॥८॥


 

पदमाकर

दमाकर का जन्म सं॰ १८१० में बाँदा में हुआ, और सं॰ १८९० में ये कानपुर में गङ्गातट पर स्वर्गवासी हुये। ये तैलंग ब्राह्मण थे। इनके पिता का नाम मोहनलाल भट्ट था। पदमाकर संस्कृत और प्राकृत के अच्छे पंडित थे। ये कुछ दिनों तक जयपुर के महाराज जगतसिंह के पास भी रहे थे, और उन्हीं के नाम पर इन्होंने जगद्विनोद नामक बड़ा रोचक काव्य ग्रंथ बनाया। इनके रचे ग्रंथों में जगद्विनोद, गङ्गालहरी और प्रबोध पचासा की कविता अच्छी है। इन्होंने राम रसायन नाम से बाल्मीकि रामायण का पद्यानुवाद भी किया था। इनके प्रायः सब ग्रन्थ भारत जीवन प्रेस बनारस में छप चुके हैं। कविता द्वारा इन्होंने बड़ा धन प्राप्त किया था। ये सदैव राजा महाराजाओं की तरह रहा करते थे। इनकी कविता में अनुप्रास का आनन्द खूब मिलता है। हम यहाँ इनकी कविता के कुछ नमूने प्रस्तुत करते हैं:—