१
जाहिरै जागतसी जमुना जब बूड़ै बहै उमहै वह बेनी।
त्यों पदमाकर हीरा के हारन गङ्ग तरङ्गन सी सुखदेनी॥
पायन के रँग सौ रँगि जातसी भाँतिही भाँति सरस्वति सेनी।
पैरे जहाँई जहाँ वह बाल तहाँ तहाँ ताल में होत त्रिवेनी॥
२
ये अलि या बलि के अधरानि में आनि चढ़ी कछु माधुरईसी।
ज्यों पदमाकर माधुरी त्यों कुच दोउन की चढ़ती उनईसी॥
ज्यों कुच त्योंहींनितम्बचढ़े कछुज्योंहीनितम्ब त्यों चातुरईसी।
जानि न ऐसी चढ़ा चढ़िमें किहिधौं कटि बीचहीलूटिलईसी॥
३
चौक में चौकी जराय जरी तिहि पै खरी बार बगारत सौंधे।
छोरि परी है सुकचुकी न्हान को अंगन तेजमें ज्योतिके कौंधे॥
छाइ उरोजन की छबि ज्यों पदमाकर देखतही चकचौंधे।
भागि गई लरिकाई मनौ लरिकै करिकै दुहुँ दुन्दुभि औंधे॥
४
जाहि न चाह कहूँ रति की सु कछू पति को पतियान लगी है।
त्यों पदमाकर आनन में रुचि कानन भौंहैं कमान लगी है॥
देत तिया न छुवै छतियाँ बतियान में तो मुसकान लगी है।
पीतम पान खवाइवे को परयंक के पास लों जान लगी है॥
५
भाई जु चालि गोपाल घरै ब्रजबाल विशाल मृणालसौ बाहीँ।
त्यों पदमाकर मूरति में रति छू न सकै कितहूँ परछाहीं॥
शोभित शम्भु मनो उर ऊपर मौज मनोभव की मनमाहीं।
लाज धिराज रही अँखियान में प्रान में कान्ह जबान में नाहीं॥
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