पृष्ठ:कविता-कौमुदी 1.pdf/३८

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( ३७ ) ताकीद जानकर जल्दी आओ । जो तुम्हारे मंदिर की स्था- पना जल्दी स्थिर हुई हैं, सो हम लोगों के दिल्ली से लौटने पर होगी। इतनी जल्दी आओ कि दिन का सबेरा वहाँ हो तो शाम यहाँ हो । मितो चैत सुदी १३, संवत् ११४५ । दूसरा पत्र - मेवाड़ की एक सनद, सं० १२२६ स्वस्ति श्री श्री चीत्रकोट महाराजाधीराज तपे राज श्री श्री रावल जी श्री समर सी जी बचनातु दा अमा आचारज ठाकर रुसीकेष कस्य थाने दली सु डायजे लाया अणी राज में ओपद धारी लेवेगा ओषद ऊपरे मालकी थाकी है ओ जनाना में थारा बंसरा दाल ओ दूजा जावेगा नहीं और थारी बैठक दली में ही जी प्रमाणो परधान बरोबर कारण होवेगा । भावार्थ श्री चित्रकोट ( चित्तौर ) के महाराजाधिराज रावल समरसिंह की आज्ञा से आचार्य ऋषीकेश को - तुमको दिल्ली से दायजे में लाया । राज्य में तुम्हारी दवा ली जायगी, दवा पर तुम्हारा अधिकार हैं, और अंतःपुर में तुम्हारे वंशजों के सिवाय दूसरा नहीं जायगा, और दरबार में तुमको प्रधान के बराबर आसन मिलेगा, जैसे दिल्ली में था । गद्य के क्रम विकास के कुछ उदाहरण सं० १४०७ – महात्मा गोरखनाथ जी स्वामी तुम्हें तो सतगुरु अम्हे तो सिघ सबद एक पूछि- बा, दया करि कहिबा, मनन करिबा रोस । पराधीन उप- राति बंधन नाहीँ, सु आधीन उपरांति मुकुति नाहीं । सं० १६०० -- गोस्वामी बिट्ठलनाथ जो प्रथम की सखी कहत है, जो गापीजन के चरण विष