पृष्ठ:कविता-कौमुदी 1.pdf/३९

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( ३८ ) सेवक की दासी करि जो इनके प्रेमामृत में डूब के इनके मंदहास्य ने जीते हैं अमृत समूह ता करि निकुज विषै श्रृंगार रस श्रेष्ठ रसना कीनी से पूर्ण होत भई । सं० १६२६ - गंगा भाट ( चंद छंद बरनन की महिमा से ) इतना सुन के पातशाह जी श्री अकबर शाहाजी आदसेर सोना नरहरदास चारन को दिया । सं० १६४८ - गोस्वामी गोकुलनाथ जी ( चौरासी और दो सौ बाचन बैष्णवों की बार्ता से ) श्री गुसाई जी के सेवक एक पटेल की वार्ता । सो वह पटेल वैष्णवराज नगर में रहतो हतो । वा पटेल वैष्णव के दो बेटा हते और एक स्त्री हती । सं० १६६० - नाभादास जी तव श्री महाराज कुमार प्रथम वशिष्ठ महाराज के चरन छुइ प्रनाम करत भये । सं० १६६६ - गोस्वामी तुलसीदास सं० १६६६ समये कुमार सुदी तेरसी बार शुभदीने लिपीतं पत्र अनंदराम तथा कन्हई के अंस विभाग पुर्वसु जे आग्य दुनहु जने मागा जे आग्य मैशे प्रमान माना । सं० १६७० -- बनारसी दासजी सम्यग् दृष्टो कहा सो सुनो । संशय, विमोह, विभ्रम ए तीन भाव जामैं नाहीं से सम्यग दृष्टी । सं० १६८० - जटमल ( गोरा बादल की कथा से हे वात कीला चित्तौड़गढ़ के गोरा बादल हुआ है जीनकी वार्ता की किताब होंदवी में बनाकर तैयार करी है । ...... ये