पृष्ठ:कविता-कौमुदी 1.pdf/४०

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( ३६ ) कथा सोल से अस्सी के साल रोज बनाई । फागुन सुदी पूनम के सं० १७६७ - सूरति मिश्र ( कवि प्रिया की टीका से ) सीस फूल सुहाग अरु बेंदा भाग ए दोऊ आये पावड़े सोह सोने के कुसुम तिन पर पैर धरि आये हैं सं० १७८६ - दास धन पाये ते मूर्ख बुद्धिवंत है जातु है । और युवावस्था पाये ते नारी चतुर है जाति है । उपदेश शब्द लक्षणा से मालूम होता है औ वाच्य में प्रगट है । स. १८६० - - लल्लू जी लाल निदान श्री कृष्णचन्द्र के पास बैठा सुन सुन घबड़ा कर अर्जुन बोला कि हे देवता तू किसके आगे यह बात कहै है और क्यों इतना खेद करें हैं । सं० १८६० - सदल मिश्र ( नासकेतोपाख्यान से ) कुडमें अच्छा निर्मल पानी कि जिसमें कमल कमल के फूलों पर भरे गूँज रहे थे, तिसपर इस सारस चक्रवाकादि पक्षी भी तोर तीर सोहावन शब्द बोलते, आसपास के गाछो पर कुछ कुद्ध कोकिलै कुहुक रहे थे जैसा बसंत ऋतु का घर हीहोय । उन्नीसवीं शताब्दी की समाप्ति तक हिन्दी गद्य का क्रम प्रायः ऐसा ही रहा । बीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ ही में हिन्दी गद्य का रूपही बदल गया, और उसने एक नवीन युग में पदार्पण किया । हिन्दी गद्य के इस नये युग की चर्चा हम कविता-कौमुदी के दूसरे भाग में करेंगे ।