पृष्ठ:कविता-कौमुदी 1.pdf/४१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

( ४० ) पद्य हिन्दी गद्य से पद्य में विशेष उन्नति हुई हैं। पद्य के द्वारा थोडे समय और थोड़े शब्दों में अधिक प्रभावोत्पादक बातें कही जा सकती हैं। उसके कंठस्थ रखने में भी सुविधा होती है, अक्षरों मात्राओं और पदों का नियम बद्ध संगठन होने से उसके पढ़ने में भी आनन्द आता है । तथा पद्य का संबन्ध गान विद्या से है और गान विद्या मनुष्य मात्र को प्रिय है, यहाँ तक कि वह पशु पक्षी तक का हृदय भी मोहित करने की शक्ति रखती है. इन कारणों से पद्य की ओर लोगों की स्वा- भाविक रुचि बढ़ती गई । गद्य में उपरोक्त गुण नहीं : इसी से पूर्वकाल में उसका प्रचार भी कम हुआ । परन्तु उपरोक्त गुण न रहने पर भी आजकल पद्य की अपेक्षा गद्य का प्रचार अधिक क्यों हैं, इसका कारण यह है कि गद्य में ही संसार का प्रतिदिन का व्यवहार चलता है । बोलकर जो कुछ काम हमलोग करते कराते हैं, सब में गद्य का उपयोग करते हैं । इसलिये थोड़े ही परिश्रम से अपने मानसिक भावों को गद्य द्वारा प्रकट करने की शक्ति मनुष्य आ सकती है । पद्य में यह सुगमता नहीं । उसके लिये अधिक परिश्रम करना पड़ता है, नियम सीखने पढ़ते हैं, मस्तिष्क के विचारों को पद्य के पेचीले रास्ते से घुमा फिरा कर निकालना पड़ता है, इसी से उसमें अधिक समय लगता है। अधिक से अधिक परिश्रम करने पर भी मनुष्य पद्य में इतनी पटुता नहीं प्राप्त कर सकता कि उसके द्वारा वह गद्य की तरह धारा प्रवाह रूप से बातचीत कर सके। पद्य के लिये प्रतिभा चाहिये । सब मनुष्य प्रतिभा सम्पन्न नहीं । अतपव जिनमें प्रतिभा है, पद्य-रचना के अधिकारी वे ही हैं ।