पृष्ठ:कविता-कौमुदी 1.pdf/४३

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( ४२ ) भाव प्रकट किये हैं; किन्तु घनाक्षरी और सवैया लिखने वाले कवियों की ही संख्या अधिक है । आजकल इन छंदों की उतनी क़दर नहीं रही। अब कितने ही नये छंदों का प्रचार बढ़ रहा है । आजकल वर्णवृत्तों में भी कविता सफलता के साथ होने लगी है। हिन्दी पद्य रचना के विषय में एक बात यह विशेष उल्लेख के योग्य है कि इसमें प्रारंभ काल से ही तुकबंदी का प्रचार है । संस्कृत में जैसे अतुकान्त कविता का बाहुल्य है, हिन्दी मैं वैसा ही, बल्कि उससे भी विशेष, तुकबंदी का प्राधान्य है । मात्रिक छंदों में तुकबंदी के बिना भाषा का माधुर्य कम हो जाता है। हां, वर्णवृत्तों में अनुकान्त रूप नहीं खटकता । पहले के कवि वर्णवृत्तों में प्रायः नहीं के बराबर ही कविता रचते थे, अतः बेतुकी की ओर उनका ध्यान हो नहीं गया । आदि काल से लेकर भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के पहले तक का हिन्दी पद्य का क्रम विकास कविता-कौमुदी ( प्रथम भाग ) में दिखलाया हो गया है, इस कारण से इस विषय में हम और उदाहरण देने की आवश्यकता नहीं समझते । हिन्दी और वैष्णव वैष्णव सम्प्रदाय में चार भेद हैं- विष्णु सम्प्रदाय, रामा- नुज सम्प्रदाय, मध्वसम्प्रदाय और वल्लभ सम्प्रदाय । इन चारों सम्प्रदायों के मुख्य आचार्य विष्णु, रामानुज, मध्व और चल्लभ थे । विष्णु स्वामी द्रविड़ देश के रहने वाले थे । इनका जन्म दिल्ली में किसी राजा के मंत्री के घर हुआ था । इन्होंने शाङ्कर मत का खंडन किया है। रामानुज स्वामी भी द्रविड़ देश निवासी थे । इनके पिता का नाम केशव " और माता Li