पृष्ठ:कविता-कौमुदी 1.pdf/४४

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( ४३ ) का " मति " था । मध्वाचार्य गुजराती थे। इनका जन्म गुज- रात में सं० १९६६ में हुआ । वल्लभाचार्य का जन्म सं० १५३५ आन्ध्रदेश (दक्षिण) में हुआ । इन्होंने भागवत दशम स्कंध का पद्य में अनुवाद किया है । राम और कृष्ण वैष्णवों के प्रधान उपास्य देव हैं। ये विष्णु के अवतार माने जाते हैं। चंद बरदायो ने रासो के पहले ही छंद में गुरु को नमस्कार कर साकार लक्ष्मीश विष्णु को स्मरण किया है। आगे चल कर उसने दस अवतारों की कथा अलग अलग लिखी है। इससे मालूम होता है कि उसके fer पर वैष्णव धर्म का विशेष प्रभाव था । और हिन्दी का आदि कवि भी वही माना जाता है । अतएव यह कहा जा सकता है कि वैष्णवों ही ने हिन्दी का उसके जन्मकाल से लालन पालन किया है । हिन्दी के साथ वैष्णवों का अधिक सम्बंध होने का एक कारण और भी हैं । वह यह है कि हिन्दी उस प्रदेश की भाषा है, जहाँ वैष्णवों के आराध्य देव राम और कृष्ण ने अवतार धारण किया था । जिस स्थान पर उन्होंने लीला की, उस स्थान वहाँ के निवासियों और उनकी भाषा से वैष्णवों का प्रेम होना स्वाभाविक ही है। राम और कृष्ण का कीर्तन करने में वैष्णव कवियों का एक ताँता सा बंध गया | हिन्दी में आज तक शायद हो ऐसा कोई कवि हुआ हो जिसने किसी न किसी रूप में रामकृष्ण का गुण गान न किया हो । पंद्रहवीं शताब्दी में स्वामी रामानंद हुये । उन्होने मानों हिन्दी भाषा में वैष्णव धर्म की नीव दृढ़ कर दी। उनके पश्चात् ही भक्त शिरोमणि सूरदास ने सं० १५४० में जन्म लिया । सूरदास ने अपनी कविता के द्वारा हिन्दी का गौरव