पृष्ठ:कविता-कौमुदी 1.pdf/४५

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( ४४ मुसलमान सम्राट अकबर के दरबार तक फैला दिया। इसी शताब्दी में दक्षिण देश से आकर स्वामी वल्लभाचार्य ने कृष्ण- भक्ति को और भी चमत्कृत कर दिया । सूरदास और वल्लभा- चार्य की संयुक्त शक्ति ने वैष्णव सम्प्रदाय में कृष्ण भक्ति की एक बाढ़ सी ला दी। इसी अवसर में स्वामी हरिदास, हित- हरिवंश और नन्ददाल की मधुर ध्वनि गूँजने लगी। वैष्णव- दल में एक से एक प्रतिभाशाली कवियों ने जन्म लेकर हिन्दी भाषा द्वारा जनता का मन ऐसा खींच लिया कि देश में चारों ओर हिन्दी कविता सहस्त्र धारा होकर उमड़ चली। अभी लोग इस आनन्द लहरी में स्नान करके तृप्त हो ही रहे थे कि हिन्दी कवियों के शिरोमणि तुलसीदास आ पहुँचे । इनकी कलम ने हिन्दी में वैष्णव धर्म को अजर अमर बना दिया । आज इनके समान प्रतिभाशाली कवि हिन्दी में कोई नहीं । आज अपढ़ सपढ़ सब में तुलसीदास वैष्णव धर्म की चर्चा करते हुये पाये जाते हैं । तुलसीदास के समान आज भारत- वर्ष भर में किसी हिन्दी कवि का आदर नहीं । वैष्णव कवियों को कविता का रस चखकर मलिक मुह- *मद जायसी और रहीम ऐसे कितने ही मुसलमान कवि अपनी कविता द्वारा वैष्णव धर्म का प्रचार करने लगे । और रसखान तो जाति पाँति सब जोड़ कर स्वयं वैष्णव हो गये । सूर और तुलसी के पीछे हिन्दी के जितने कवि हुये, सब राम और कृष्ण के कीर्तन में उत्तरोत्तर वृद्धि करते चले आये। ग्रामीण कवियों ने अपनी रोज की बोल चाल में भी कविता रची । उसके द्वारा गाँव के अपढ़ लोगों में वैष्णव धर्म का खूब प्रचार हुआ। एक उदाहरण देखिये :-