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पृष्ठ:कविता-कौमुदी 1.pdf/४४५

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कविता-कौमुदी
 

राजन की नीति गई मीत की प्रतीति गई नारिन की प्रीति
गई जार जिय भायो है। शिष्यन को भाव गयो पंवन को
न्याव गयो साँच को प्रभाव गयो झूँठ ही सुहायो है॥ मेघन
को दृष्टि गई भूमि सो तौ नष्ट भई सृष्टि पै सकल बिपरीति
दरसायो है। कीजिये सहाय हे कृपा कर गोबिन्द लाल कठिन
कराल कलिकाल अब आयो है॥३९॥

पन्ना के पंडोर गढ़ झन्ना के झवैया झरि झारूदार झाँसी
के भवया भानपुर के। कहैं कवि कुन्दन कमायूँ के कुम्हार
भाँड़ दाउद के दरजी दमामी दानपुर के॥ तेली तिलंगान के
तँबोलो तेजगढ़ वाले भावज के भाँगड़ सोनार सोनपुर के।
येते मिलि मारैं जूती चुगुल चवाई शीश कालपी के कूँजड़े
कलाई कानपुर के॥४०॥

ह्वै कै महाराज हय हाथी पै चढ़ै तो कहा जोपै बाहुबल
निज प्रजनि रखायो ना। पढ़ि पढ़ि पण्डित प्रवीण हूँ
भये तो कहा बिनय विवेक युत जो पै ज्ञान गायो ना॥
"अम्बुज" कहत धनधनिक भयो तो कहा दान करि जोपै निज
हाथ जस छायोना। गरजि गरजि घनघोरनि कियो तो कहा
चातक के चोंच में जु रंच नीर नायो ना॥४१॥

जामें दू अधेलो चार पावली दुअन्नी आठ तामें पुनि आना
सखी सोरह समात हैं। बत्तिस अधन्नी जामें चौंसठ पईसा
होत एक सों अठाइस अधेला गुनमात हैं॥ युग शत छप्पन
छदाम तामें देखियत दमरी सु पाँच शत बारह लखात हैं।
कठिन समैया कलिकाल को कुटिल दैया सलग रुपैया भैया
कापै दियो जात है॥४२॥

दानी कोउ नाहिंन गुलाबदानी पीकदानी गोंददानी
घनी शोभा इनही में लहे हैं। मानत गुणी को गुण ही में प्रकटत