पृष्ठ:कविता-कौमुदी 1.pdf/५०

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( ४६ ) गुजरात में गुजराती भाषा के साहित्य का जन्म वरसी मेहता और मोराबाई के समय से हुआ । मीराबाई को जोवनी और कुछ कविता कविता-कौमुदी में दी हुई हैं। उससे यह साफ प्रकट होता है कि मीराबाई को कविता की भाषा कैसी है । कहीं कहीं मारवाड़ी और गुजराती बोलचाल के शब्द आगये हैं नहीं तो वह विशुद्ध हिन्दी ही है । यहाँ इस नरखी मेहता का एक पद लिखते हैं। उससे पाठक आसानी से समझ लेंगे कि गुजराती और हिन्दी में कितना अंतर है । वैष्णव जन तो तेने कहिये जो पीड़ पराई जाणे रे ! पर दुःखे उपकार करे तोए मन अभिमान न आणे रे ॥ सकल लोक माँ सौने बन्दे निन्दा न करे केनी रे । वाच, काछ, मन निश्चय राखे धन धन जननी तेनी रे ॥ सम दृष्टी ने तृष्णा त्यागी पर स्त्री जेने मात जिल्हा थकी असत्य न बोले पर धन नव झाले हाथ रे ॥ मोह माया व्यापे नहिं जेने दृढ़ वैराग्य जेना मन माँ रे । राम नाम सू ताली लागी सकल तीरथ तेना तन माँ रे ॥ वणलोभी ने कपट रहित छे काम कोध निवाला है। भणे नरसैयों तेनू दर्शन करताँ कुल एकोतेर ताला रे । बहुत थोड़े शब्द इसमें ऐसे हैं, जो हिन्दी वाले न समझ सकते हों । परन्तु भाव तो सब समझ लेंगे । नरसी मेहता के पहले गुजरात में गुजराती भाषा बोली तो आती थी किंतु उसका कोई साहित्य नहीं था | ब्रजभाषा की कविता को ही विद्वान और कवि लोग पढ़ते और लिखते थे । गुजराती में ब्रजभाषा का आधिक्य है। इसका एक मुख्य कारण यह है कि वल्लम सम्प्रदाय का आदर गुजरात में बहुत है । वल्लभ सम्प्रदाय का प्रति-साहित्य ब्रजभाषा में बहुत