पृष्ठ:कविता-कौमुदी 1.pdf/५१

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( ५० ) है। इससे गुजरात में धार्मिक भाव के साथ ब्रजभाषा का भी प्रभाव बढ़ गया । गुजराती कवियों ने हिन्दी के बहुत से छंदों को अपनाया है और उनमें रचनाएँ की हैं। हिन्दी में जैसे तुलसीदास की चौपाई, सूरदास के पद और गिरिधर की कुंडलियाँ प्रसिद्ध हैं, वैसे ही गुजराती में नरसी मेहता की प्रभाती, मीराबाई के भजन, सामल के छप्पय, दयाराम की गरभियाँ, और नर्मदाशंकर के रोला छंद की महिमा है । सुप्रसिद्ध कवि दयाराम की कविता तो हिन्दी से बहुत ही मिलती जुलती हैं। लीजिए, एक उदाहरण देखिये :- हरदम कृष्ण कहे श्रीकृष्ण कहे तू ज़बाँ मेरी । यही मतलब खातर करता हूँ खुशामद मैं तेरी ॥ दही और दूध शक्कर रोज खिलाता हूँ तुझे । तौ भी हर रोज हरनाम न सुनाती मुझे ॥ खोई जिन्दगानी सारी सोइ गुनाह माफ तेरा । दया मत भूले प्रभुनाम आखिर वक्त मेरा ॥ बँगला और मराठी की अपेक्षा गुजराती का हिन्दी से अधिक सम्बन्ध है । इस समय भी गुजराती साहित्य में हिन्दी की बहुत छाया वर्तमान है । हिन्दी और मुसलमान मुसलमान जब से इस देश में आये, तभी से हिन्दी के साथ उनका घनिष्ट सम्बन्ध रहा। राज्य का सब कामकाज हिन्दी ही में होता था । मुहम्मद कासिम, महमूद गजनवी और शहाबुद्दीन गोरी ने हिन्दुस्तान में अपना दर हिन्दी ही में