पृष्ठ:कविता-कौमुदी 1.pdf/५२

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L ( ५१ ) रक्खा था। उनकी तवारीखों से इन बातों का साफ साफ पता चलता है । हसन गाँगूँ" ब्राह्मणी ने गांगू ब्राह्मण को अपने हिसाब का दहर सौंपा था । अकबर के समय में तो हिन्दी का महत्व बहुत बढ़ गया था। वह स्वयं हिन्दी मैं कविता रचता था। अपने बेटे जहाँगीर को भी उसने हिन्दी सिखाई, और अपने पोते खुशरो को तो छः वर्ष की अवस्था में ही हिन्दी सीखने के लिये भूदत्त भट्टाचार्य के सुपुर्द कर दिया था। शाहजहाँ अपनी मातृभाषा के समान हिन्दी भाषण में अधिकार रखता था । शाहजहाँ के दरबार में हिन्दी कवियों का अच्छा सम्मान था । उसका बड़ा लड़का दारा तो हिन्दी और संस्कृत में अपने बाप दादाओं से भी बढ़कर निकला। उसने उपनिषदों का फारसी भाषा में उलथा किया। औरङ्गजेब यद्यपि हिन्दुओं से बड़ा द्वेष रखता था, हिन्दी से विमुख वह भी नहीं था। एक बार शाहजादा मोहम्मद आज़म ने कुछ आम और ङ्गजेब के पास भेजे और प्रार्थना की कि इनके नाम रख दो। औरङ्गजेब ने बेटे को लिखा कि तुम स्वयं विद्वान होकर बूढ़े बाप को क्यों कष्ट देते हो, खैर तुम्हारी प्रसन्नता के लिये आमों का नाम मैंने सुधारस और रसना विलास रक्खा है । शाही दरबारों में हिन्दी गवैयों का भी बड़ा आदर था । तानसेन को अकबर ने पहले ही मुजरे में एक करोड़ का इनाम दिया था । बैरमखाँ खानखाना ने बाबा रामदास को एक लाख रुपये एक ही दिन दे डाले थे। शाहजहाँ ने महापात्र जगन्नाथ राय त्रिशूली के बराबर रुपये तौल दिये थे। उसी ने कलावंत लाल खां को गुणनिधि की उपाधि दी थी । हिन्दी का इतना आदर था कि मुसलमान गवैये भी हिन्दी