पृष्ठ:कविता-कौमुदी 1.pdf/५७

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२ था । उसके ग्यारह सन्तति हुई, दस लड़के और एक लड़की ; लड़की का नाम राजबाई था। चंद के दस पुत्रों में जल्ह बड़ा योग्य था । पृथ्वीराज को बहन पृथाबाई का विवाह, "रासो" के अनुसार, चित्तौर के रावल समरसिंह के साथ हुआ था । पृथाबाई के साथ जल्ह भी रावल जी को दहेज में दिया गया था। जब शहाबुद्दीन के साथ पृथ्वीराज के अन्तिम युद्ध में रावल समरसिंह जी मारे गये तब उनके साथ पृथाबाई सती हुई थी । सती होने के पहिले पृथाबाई ने अपने पुत्र को एक पत्र लिखा था । जिसमें सूचना दी थी कि श्रीहुजूर समर में मारे गये, और उनके संग रिपीस जी भी बैकुठ को पधारे हैं। रिषीकेस जी उन चार लोगों में से हैं जो दिल्ली से मेरे संग दहेज में आये थे, इस लिये इनके वंशजों की खातिरी राखना । ने पाछे मारा प्यारी गरां का मनषां की पात्री राखजो । ई मारा जीव का चाकर हे जो थासु कदी हरामपोर नीवेगा" । यह पत्र माघ सुदी १२ संवत् १२४८ विक्रम का लिखा हुआ है। इससे प्रकट है कि जल्द पृथाबाई के साथ चित्तौर गया था । वर्णन किया है। साथ उपस्थित "रासो" को पूरा चंद ने पृथ्वीराज का चरित्र जन्म से लेकर अन्तिम युद्ध तक "पृथ्वीराज रासो” नामक महाकाव्य में अन्तिम लड़ाई के समय चंद पृथ्वीराज के नहीं था, वह देवी के एक मन्दिर में बैठ कर कर रहा था । इसलिये अन्तिम लड़ाई का वृत्तान्त वह नहीं लिख सका । पीछे से उसके पुत्र जल्द ने उस युद्ध का वृत्तान्त लिखा। रासो में लिखा है कि पृथ्वीराज को शहाबुद्दीन ने पकड़ लिया था । वह उन्हें गजनी ले गया और उनकी दोनों आँखें फोड़वा कर उसने उन्हें कैदखाने में डाल दिया । "रासी"