पृष्ठ:कविता-कौमुदी 1.pdf/६०

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चन्दबरदाई ५ डमर । दस पुत्र पुत्रिय एक सम रथ सुरंग उम्मर भंडार लछिय अगनित पदम सो पद्म सेन कुँवर सुघर ॥३॥ दूहा पद्म सेन कुँवर सुघर ता घर नारि सुजान । ता उर एक पुत्री प्रकट मनहुँ कला ससि भान ॥ ४ ॥ कवित वन्निय । अमत रस पिनिय ॥ लुट्टिय । मनहुँ कला ससि भान कला सोलह सो बाल बेल ससिता समीप बिगसि कमल मृग भ्रमर बैन खंजन मृग हीर कीर अरु बिम्ब मोति नख शिख अहि छत्रपति गयंद हरि हंस गति विह बनाय संचै सत्चिय । पदमिनिय रूप पद्मावतिय मनहु काम कामिनि रचिय ॥ ५ ॥ दूहा घुट्टिय ॥ मनहु काम कामिनि रचिय रचिय रूप की राम | मोहिनी सुर नर मुनियर पास ||६|| सब पशु पंछी सामुद्रिक लच्छन सकल aafa कला सुजान । जानि चतरदस अंग पट सखियन सँग खेलत फिरत कीर इक्क दिपय नयन कवित्त रति वसंत परमान ॥ ७॥ महलनि बाग निवास । तब मन भयो हुलास ॥ ८ ॥ मन अति भयो हुलास बिगसि जनु कोक किरन रवि । अरुन अधर निय सुधर बिम्ब फल जानि कीर छवि ॥ यह चाहत चख चकृत उह जु तक्किय भरपि भर | चंच चहुट्टिय लोभ लियो तब गहिन अप्प कर ॥