पृष्ठ:कविता-कौमुदी 1.pdf/७०

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दबरदाई करी चोह चिक्कार कार कलप भग्गे, मदं तंजियं लाज ऊमंग दौरे गजं अध चहुअन केरो, करीयं गिर चिहो चक्क गिद्द उड़ी भान अधार रैन', सूधि सिरं नाय कम्मान प्रथिराज राजं, १५ मग्गे ॥ ८८ ॥ फरः ॥ ८६ ॥ नहीं मज्झि नैन ॥ ६० ॥ पकरिये साहि जिम कुलिंग बाजं ॥ ६१ ॥ परे मीर से पंच तह लैचल्यो सिताबी करी फारि फौंज, रजपुत पचास जुज्झे अमोरं, बजे जीत खेत चोजं ॥ ६२ ॥ के नहू नीसान घोरं ॥ ६३ ॥ दूहा जीति भई प्रथिराजकी पकरि साह है संग । दिल्ली दिसि मारगि लगौ उतरि घाट गिर गंग ॥ ६४ ॥ वर गोरी पद्मावती गहि गोरी सुरतान | निकट नगर दिल्ली गये प्रथीराज चहुआन ॥ ६५ ॥ कवित्त परिय | गंठिय ॥ बोलि विप्र सोधे लगन सुभ घरी हर बाँसह मंडप बनाय करि भाँवरि ब्रह्म वेद उच्चरहिं होम चौरी जु प्रति वर । पद्मावति दुलहिन दुल्लह प्रथिराज डढ्यो साह सहाबदी अड्ड सहस हय वर सुवर । दे दान मान षट भेस की बढ़ े राज दुग्गा हुजर ॥ ६६ ॥ राज नर ॥