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कविवचनसुधा।


नाम के रटन बिनु छूटत न दाग है । चाहो चारो ओर दौर देखो गौर ज्ञानहीन दीनता न क्षीण होय झीन अघ आग है ॥ जहा तक साधन सुराधन बिलोकिये जू बाधन उपाधन सहित नट वाग है । तीरथ की आस सो तो नाहक उपास हेतु एकबार राम कहे कोटिन प्रयाग है ॥ युगल अनन्य इत उत भ्रम श्रम दाम नाम के रटन बिन छूटत न दाग है ॥ ७१ ॥

और नाम अपर मनीन के समान स्वच्छ रामनाम चित चिन्तामनि चाहि चाहरे। और नाम रैयत दिवान औ वजीर सम राम नाम अचल अखण्ड बादशाह रे ॥ और नाम शिष्य सद समता सजाय सदा राम नाम गुरू गुण अगम अथाह रे ॥ युगल अनन्य और नाम दिन चार प्यार राम नाम नेहनिधि नित्य निरबाह रे ॥ ७२ ॥

सवैया।

हाली में हाली कहे कछुहूं पर प्रीति पुनीत पगे बनमाली । माली मिसाल फिरो बर बाग सुसींचत होत सुगन्ध सुसाली । साली मिलाप बिना सजनी उरताप कलाप न आवत लाली । लाली ललाम लला की मला जब चित्त चढ़े तबहीं सुख हाली ॥ प्रेम बराबर ईश सही नहीं बाद बिबाद विषाद की गैल है । या रस स्वच्छ प्रतक्ष बिराजन मानत मूढ न ठानत सैल है ॥ नाम निसोत सनेह समेत रटे यकतार लखे सत सैल है । श्रीयुग्म अनन्य सुजान भले पर भाव विहीन बराबर बैल है। मिलि गांव के नांव धरो सबही चहुँघा लखि चौगुनो चाव करो।