पृष्ठ:कविवचनसुधा.djvu/५

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कविवचनसुधा।

राधे को रसाल रूप कहां लौ बखान करौं हरिद्याल उपमा बिसाल सुखकन्द पर । नूपुर बजत पग भूपुर धरत गति गुजनकी भौर कैसी मंजु अरबिन्द पर ॥ बिम्ब से प्रवाल से गुलाल पर झूमि रह्यो झूमका मयूर ज्यों अनन्द पर । गुदे लाल तार से सेवार से सरस बार फूलि रह्यो मानों इश्कपेंचा चारु चन्द पर ।। १४॥

भरकत सूत कैधौं पन्नगी के पूत कधौं राजत अभूत तमरान के से तार हैं । मकतूल गुनग्राम सोभित सरस स्याम काम मृग कै कुहू के कुमार हैं । कोप के किरनि के जलज नलिनी के अन्तु उपमा अनन्त चारु चवर सिंगार हैं। कारे सटकारे भीने सोधसे सुगन्ध बास ऐसे बलभद्र नव बार तेरे बार है ॥ १५ ॥

सुननी चिकन की बिछाये डोरी लाल लाल ताकी मखमल की सी सोमा दरवार है । तिरछी चितौनि येती उदगी दौरिजात बारुनी दुरान आगे खड़े चोवदार है ॥ वकसी देवान दुओ कोय लागे कानन सों अंजन के दसखत सिद्ध कारबार हैं । लाज औ मनोज ये हुजूर के खवास खास नागरि के नैन के नबाव नायकानन कमल पै चम्प -कली तापै मुकता की फली तापै केदली के खम्भ तो हेम भृङ्गी बर । ताप भरो पानिप सरोवर लहरि लेत तापै एक कचनार दोय कली सोने कर ॥ तापै हेमसाखा दोय पल्लव प्रवाल कीन्हे तापर कनक कम्बु तापर रसाल फर ।