पृष्ठ:कविवचनसुधा.djvu/६

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कविवचनसूधा

तापै बिम्ब तापे कीर तापै अरबिन्द धनु तापै इन्दु तापै धन ताप सात्विकी डगर ॥ १७ ॥

कुन्द की कली सी दन्तपक्ति कौमुदी सी विच विच रेख मीसी की अमी सी सी गटकि जात । बीसी त्यों रची सी बिरची सी बरछी सी तिरछी सी अखियां वै सफरी सी त्यों फरकि जात ॥ सर की नदी सी दया मानसिन्धु की सी मनो चक्रित खरी सी रति डरी सी सरकि जात । चौफन्द फँदी सी मोहैं कसी सी ससी सी दुखि जाकी सीसी करिबे मै सुधा सीसी सी ढराक जात ॥ १८ ॥

नखत से मोती नथवन्दिया जराऊ जरी तरल तरचौननकी आमा मुख फूटी है । देवकीनंदन कहै तैसिये सुचम्पकली पचलरी मंत्र गति मोहनी की लूटी है | चूनरी कुसुम्भी रङ्ग उनरी परत तन कलितकिनारी की ललित रस जूटी है । बाल तेरी छाती पै हमेल छबिछूटी मानो लाल दरियाई बीच बेलदारबूटी है ॥१९॥

दीन्हो दई रूप कैधौ याही को सकलि सब जाकी बेस बातें बस वाल मै करैया सी। अखि अलबेली की अनोख। अरविन्द ऐसी बान ऐसी लेखी परि प्रानन हरैया सी ॥ सुकवि निहाल कहै मेनका सुकेसी ऐसी केतिको खड़ी है जाके पायन परैया सी। महल महान पर बैठी चारु चन्द्रमा सी वाके आसपास और तरुनी तरेया सी ॥ २० ॥

आंगन पौरि खौं दौरि गई सुनि बांसुरी की धुनि बाजन लागी । बेनी अचेत परी जवते तबते बवरी कोइ लाज न लागी ।।