पृष्ठ:कविवचनसुधा.djvu/५६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
५५
कविवचनसुधा।


माजे कहां लो बचैं सजनी कहूं गाजै टरै टटकान के टारे ।। आये हो उधो भले ब्रज में बहुतै दिनते करती उर जापनो। आइये बैठिये माथन पै संग साथिन में गनती तुव थापनो ॥ श्याम की बातें कछू न कहो जिन छोड़ दियो पितु मातहु आपनो । और कहा चहौ सो ना कही पहिले कहौ कूवरि को कुशलापनो।

कहां कल कंचन से तन सो ओ कहा यह मेघन सो तन कारो। सेजकली विकली वह होत कहां तुम सोइ रहो गहि डारो ॥ दासजू ल्यावही ल्याव कहौ कछू आपना वाको न बीच विचारो। कौल सी गोरी किशोरी कहा औ कहां गिरिधारन पाणि तिहारो॥ कामरी कारी कॅधा पर देग्वि अहीरहिं बोलि सबै ठहरायो । जोइ है सोइ है मेरो तो जीव है याको मै पाय सभी कछु पायो । कामरी लीन्हो उढाय तुरन्तहि काम री मेरो कियो मन भायो । कामरी तो मोहिं जारो हुतो बरु कामरी-वारे विचारे बचायो ।

कबित्त ।

छूट्यो गेह काज लोकलाज मनमोहनी को छूट्यो मनमो- हन को मुरली बजाइबो । देखि दिन दू में रसखानि बात फैलि जैहै सजनी कहां लों चन्द हाथन दुराइबो ॥ कालही कलिन्दी तीर चितयो अचानक हौं दोउन को दुहूं दुरि मृदु मुसकाइबो । दोऊ परै पैया दोउ लेत हैं बलैया उन्हें भूलि गई गैयां उन्है गागरि उठाइयो ॥ ३२॥

सवैया।

का कहिये परधीन भई गुरुलोगन में निशिवासर जीजिये ।