पृष्ठ:कविवचनसुधा.djvu/७

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कविवचनसुधा।


तोरन तौलिबे को तरुनी सुहने हरिको सखि लाजन लागी । काल ही काल दसी सी तिया फिरि आजु वही धुनि बाजन लागी॥ मनमें थिर है करि ध्यान सुजानको आमन में तन तूरति री । झपकी अखियां न खुले प्रहलाद पिया बतियां न बिसूरति री ।। मुख चन्दकी खोर चकोरी तिया मनमें अभिलाखन पूरति री। बलि हों तो बुलावति बोलै नहीं वह है गई सांवरी मूरति री२२

कवित्त ।

कैधौं रतिपति रति गेह के रुचिर खम्भ अमल अनूप रूप हरै रूपजात के । रतिके अरम्भ पिय भुजपरिरम्मन को सुखद सवारे विधि बुधि अवदात के ॥ कलानिधि बनक कनक कदलीन हूं के हीन करि कलम मलीन गति मात के । जघन सघन वोट आवरनहूं की मन मुनि बस करन हरन युधि सात के ॥ २३ ॥

सोहैं मेचमाले से तमाल दुति काले अति अमित कसाले पले सेरे ढिग चाले रौं । लखिये खुसाल हाले २ पति माले कोले करि के अचाले नहिं लाले सो ये आले री ॥ बहुत रसाले बनमाले गले हाले हले चित अन्तराले कंज काले सो हटा ले री । भाल की सी नाले कंजकेतू सी बचाले वृनवाले नन्दलाले को हियाले में लगा ले री ॥ २४ ॥

ऐसे बोन मैन के न देखे ऐनमैन के जगैया रैन सैन के जितैया सौति सीन के । कमल कुलीनन के सकुली करनहार कानन लौ कोयन के लोयन रॅगीन के ॥ भनत कबिन्द्र भावती के नैन जावक