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पृष्ठ:कविवचनसुधा.djvu/६८

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कविवचनसुधा।

जो अबकी औसर चूक गया सिर पीटि सदां सों रोता है। कहु रामसहाई रामनाम क्यों उमर अकारथ खोता है ॥ ६ ॥ हे-हाजिर रहियो हाकिम से जिसकी नगरी में रहता है। इस जन्म जिमी के पट्टे में कुछ बाकी भी तू चहता है ।। जो फिरे हुये हैं हाकिम से उन गठबर का गढ़ ढहता है । जो सन्मुख रामसहाय सदा सो आदि अन्त सुख लहता है॥१०॥ ख-खैर इसी में जानै दिल मो खालिक से खुशहाल रहै । गुरुज्ञान गरीबी सिफत् सना दुनियां में सीधी चाल रहै ।। ना सोना चांदी माल रहै ना हीरा मोती लाल रहै । तू रामसहाय बिचारि देखु आद्यन्त में एक अकाल रहै दाल-दम् आता अरु जाता है सो तो तेरा पैगामी है। दो मीर मलायक की दस्तक तुझपर मौजूद मुदामी है । ऐसे पर भी कुछ गफलत् है तो आखिर को बदनामी है । छिपि रहौगो रामसहाय कहां साहब तो अन्तर्यामी है ॥ १२॥ जाल-जाहिर सरह शरीकर हौ अरु बातिन में मजबूत रहौ । दिल डोर तोरि कर दुनियां की उस साहब से साबूत करो ॥ इस तन तस्वी में दम दाना सूरति सनेह ले सूत करो । गुरुमन्तर रामसहाय जपो बसि भरम भयानक भूत करो ।।१३।। रे-राह चलोगो जीधर की ऊधर को यकदिन आओगे । गर काम करोगे दोजक का तो मिस्त में क्यों कर जाओगे ॥ जो बीज बबूर के बोओगे तो म्वरमा क्यों कर खाओगे। इम्साफ है रामसहाय यही अपना कीया फिर पाओगे ॥ १४ ॥